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आजकल की गुफ़्तगू
यूँ तो हर रोज़ सुबह होती ही है,दिन भी गुज़र ही जाता है किसी तरह से।पर कुछ तो है — एक ख़लिश सी,जो मन के किसी कोने में चुपचाप छुपी रहती है। एक कशमकश है, जो हर रोज़ रूबरू होती है,दिल पर छा जाती है — बेबस कर जाती है। सोचें तो जीवन में सब…